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- मोक्ष मार्ग में बीस कदम, अर्थ (धन) को हमेशा अनर्थ ही समझो। सचमुच उससे सुख का लेश भी नहीं मिल सकता । पुत्र से भी धन पाले डरते रहते हैं। यही नीति सर्वत्र दिखाई देती है
इसमें कहा गया है कि धनवान को अपने पुत्र से भी डर लगता हैं कि कहीं धन पर अधिकार पाने के लिए यह मेरी हत्या कर नहीं देगा? इस प्रकार धन जब पुत्र से भी भयभीत कर देता है तो जीसके जीवन में परोपकार नहीं हैं, उससे तो घास ही देता है, तब औरों की क्या बात?
यह तो भय का एक पक्ष हुआ; परन्तु उसका एक दूसरा पक्ष भी है, जो उज्जवल है। जहाँ भय मनुष्य को अच्छे कार्यो की प्रेरणा देता है, वहाँ वह उपादेय है। जैसे सन्त तुलसीदास ने लिखा है :
हरि डर गुरु डर गाम डर, डर करणी में सार।
'तुलसी' डर्या सो उबर्या गाफ़िल खाई मार।। ईश्वर का, गुरु का और गाँव (जनता) का डर हमें सन्मार्ग पर चलाता है, बुरे कार्यो से रोकता, संयम सिखाता है और कर्त्तव्यपालन की प्रेरणा देता है तो इस डर को छोड़ने की सलाह कौन देगा?
बाईबिल में लिखा है :- "भगवान् का भय ही ज्ञानका उदय करता है।''
ज्ञानी पाप नहीं करता जो भगवान से डरता है, वह भी पाप नहीं करता; इसलिए दोनों समान हैं। जो ज्ञानी है, वहीं तो भगवान से डरता है और जो भगवान से डरता है, वही तो सच्चा ज्ञानी है!
एक अन्य कवि ने लगातार डरते रहने की सलाह दी है। किन से? उसी के शब्दों में सुनिये:
कुतो हि भीतिः सततँ विधेया।
लोकापवादाद् भवकाननाच्च।। लगातार किससे डरना चाहिये ? लोकनिन्दा से और संसार रूपी जंगल से
बुरे कार्यों से ही किसी की लोग निन्दा करते हैं; इसलिए लोक निन्दा से डरने वाला निश्चय ही बुरे कार्यों से दूर रहने का प्रयास करेगा।
इसी प्रकार भटकने के डर से लोग सड़क पर ही घूमना पसन्द करते हैं, जंगल में नहीं। संसार भी एक ऐसा ही घोर जंगल है, जिसकी विभिन्न योनियों में प्राणी भटक रहे हैं। जो भवारण्य में भटकने से डरते हैं, वे धर्म की पक्की सड़क पर चलना पसन्द करते हैं।
तुलसीदास तो भक्ति के लिए भय को अत्यावश्यक घोषित कर गये हैं, उनके शब्द ये है:
भय बिनु प्रीति न होई गुसाई!
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