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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir •निर्भयता. कबीर साहब भी इसी पक्ष में थे। वे भय को पारस पत्थर के समान बता कर कह गये हैं कि निर्भय तो किसी को बनना ही नहीं चाहिये : भय से भक्ति सभी करें भय से पूजा होय। भय पारस है जीविका निर्भय होउ न कोय।। जो निर्भयता यह कहती है कि मैं किसी से नहीं डरती-भले ही वह ईश्वर हो या गुरु, तो वह उत्थान के बदले हमारे पतन का ही मार्ग प्रशस्त करती है। इससे विपरीत ईश्वर का, गुरुका अथवा माता-पिता का भय किस प्रकार हमारे उत्थान का, उन्नति का, प्रगति का एवं जीवन सुधार का प्रमुख आधार बन जाता है ? यह बात एक उदाहरण से स्पष्ट करने का मैं कुछ प्रयास करता हूँ। सुनिये :- . किसी प्रदेश में एक सुन्दर नगर था। उसमें हजारों भव्य भवन बने हुए थे। एक भवन में अपने माता-पिता के साथ पाँच-छह वर्ष का एक बालक रहता था। रविवासरीय अवकाश के कारण उस दिन वह विद्यालय में अध्ययनार्थ नहीं गया था। दोपहर की बात है, लगभग दो बजे का समय होगा। अपने भवन के गवाक्ष में बैठा हुआ वह बालक नीचे जाने आने वालों की विभिन्न वेष्टाएँ देख कर अपना जी बहला रहा था। उसी समय सहसा उसकी दृष्टि एक खोमचे वाले पर पड़ी। उस के खोमचे में ताजे चमकीले जामुनों का ढेर लगा था। खरीदने वालों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए खोमचे वाला मधुर स्वर में इस तरह पुकार रहा था : "लो जी! काले-काले जामुन सुन्दर सस्ते नीले जामुन ताजा बढिया मीठे जामुन गीले और रँगीले जामुन लोजी! और चखोजी जामुन लो जी! प्यारे-प्यारे जामुन पके हुए हैं सारे जामुन सारे जग से न्यारे जामुन" यह सुनकर बालक के मन में जामुन खाने की तीव्र इच्छा जागृत हुई। उसने पिताजी के खुंटी पर टँगे कोट की जेब से दस पैसे का एक सिक्का चुपचाप निकाला । फिर भवन की ऊपरी मंजिल से नीचे उतर कर सड़क पर भागता हुआ वह खोमचे वाले के पास जा पहुंचा। उससे दस पैसे के जामुन लिये। वहीं खड़े-खड़े खाये । जामुन से उसकी जीभ जामुनी रंग से रंगीन हो गई। अब उस के सामने यह समस्या खड़ी हो गई कि जीभ का रंग छिपाया कैसे जाय ? यदि बोलने के लिए वह मुँह खोलता है तो घर वाले जान जायँगे कि जामुन खाये गये हैं और फिर १२७ For Private And Personal Use Only
SR No.008726
Book TitleMoksh Marg me Bis Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages169
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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