SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 129
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - मोक्ष मार्ग में बीस कदम, मोहनीय कर्म के उदय से जो भय होता है, उससे तो वही बच सकता है, जो इस कर्म को क्षीण करने के लिए तपस्या करे। शास्त्रों में विघ तपों का जो विधान पाया जाता है, वह केवल शास्त्रों की शोभा बढ़ाने के ही लिए नहीं है। जीवन को तेजस्वी, सशकत और वीर बनाने के लिए है। सिंह, नाग, भालू आदि भयंकर प्राणियों को देखकर ही प्राण काँपने लगते हैं, हिम्मत छूट जाती है और लोग भयभीत हो जाते है। जो भयंकर दृश्य को देखकर घबराहट में पड़ जाता है, वह उससे बचने का उपाय नहीं सोच पाता। भय के कारणों का स्मरण करके डरना तो ऐसा दुर्गुण है, जिसे हम सीधी मूर्खता कह सकते हैं। कारण मौजूद न होने पर भी उनकी कल्पना करके काँपते रहना कहाँ तक उचित माना जा सकता है ? उसकी दुर्दशा का वर्णन किसी शायर की इन दो पंक्तियों में आ सकता इरादे बाँधता हूँ, सोचता हूँ, तोड़ देता हूँ कहीं ऐसा न हो जाय! कही वैसा न हो जाये! भय के इन चार कारणों का वर्णन स्थानांग सूत्र में मिलता है। इसी सूत्र में अन्यत्र भय के सात प्रकार बताये गये है :---- सत्त भयट्टाणे पण्णत्ते तं जहा-इह लोगभए, परलोगभए, आदाणभए, अकम्हाभए, वेयणाभए, मरणभए, असिलोकभए। भय के सात प्रकार कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं :(१) इहलोक भय (सजातीय भय अर्थात् मनुष्य से मनुष्य को भय अथवा पशु को पशु से भय), (२) परलोकभय (विजातीय से भय जैसे मनुष्य को सिंह से, सिंह को हाथी से या हाथी को सिंह से भय), (३) आदान भय (चोरी, डकैती, लूट, छीनाझपटी आदि का भय, (४) अकस्मात् भय (बिना उचित कारण के कल्पना मात्र से अँधेरे आदि में डरना), (५) वेदना भय (पीड़ा से डरना), (६) मृत्यु से डरना (मरणभय) और (७) आश्लोक-भय (अपमान, अपशय, बदनामी आदि से डरना)। 'डरना कब तक जवित है ? इसके उत्तर में कहा गया है :तावद्भयेषु भेतव्यम् यावद् भयमनागतम्। आगतं तु भयं दृष्ट्वा प्रहर्त्तव्यमशड्या।। --चाणक्यनीतिः १२२ For Private And Personal Use Only
SR No.008726
Book TitleMoksh Marg me Bis Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages169
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy