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१६. निर्भयता
साहसी सज्जनो!
भय साहस का विरोधी है। जो प्राणी पाप नहीं करता, वह भयभीत नहीं होता। पापी ही पकड़े जाने के भय से काँपता रहता है।
पड़ौसियों को देख-देखकर मनुष्य अपनी आवश्यकताएँ बढ़ा लेता है । फर्नीचर चाहिये, सोफासेट चाहिये, एयरकूलर चाहिये, फ्रिज चाहिये, स्कूटर चाहिये, कार चाहिये, हवाई जहाज चाहिये....इस सिलसिले का कोई अन्त नहीं आता। आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए धन चाहिये। धन के लिए वह अन्याय करता है, रिश्वत लेता है, बेईमान बनता है, झूठ बोलता है, धोखा देता है और न जाने क्या-क्या नहीं करता है? ज्यों-ज्यों ये पाप बढ़ते हैं, त्योंत्यों चिंताएँ बढ़ती हैं-भय बढ़ता है।
पेट भरना आसान है, पेटी भरना कठिन । हम पेटी भरना चाहते हैं-परिग्रह बढ़ाना चाहते हैं-संग्रह करना चाहते हैं और भूल जाते है किइच्छा हु आगाससमा अणन्तिया।।
___-उत्तराध्यायनसूत्र [इच्छा आकाश के समान अनन्त होती है-अन्तहीन होती है]
उसकी पूर्ति के पीछे लगना पागलपन है :जो दसबीस पचास भये सत होइ हजार तु लाख बनेगी कोटि अरब्ब खरब्ब असंख्य धरापति होने की चाह जगेगी, स्वर्ग-पाताल का राज्य करूँ तृसना मनमें अति ही उमडेगी ‘सुन्दर' एक सन्तोष बिना शट! तेरी तो भूख कभी न मिटेगी
इस पद्य में सुकवि सन्त सुन्दर दास ने सन्तोष को तृष्णा से बचने का उपाय बताया है। जिसमें सन्तोष होता है, उसकी तृष्णा शान्त रहती है और आवश्यकताएँ सीमित । ऐसा व्यक्ति धन के लिए पाप नही करता; इसलिए निर्भय रहता है। ___ भय से हाथ-पाँव काँपने लगते है, मुंह सूखने लगता है और शकित क्षीण होने लगती
विचारकों ने भय उत्पन्न होने के चार कारण बताये हैं :- (१) शक्तिहीनता, (२) भय नामक मोहनीय कर्म का उदय, (३) भयानक दृश्य और (४) भय के कारणों की स्मृति।
बलबान की अपेक्षा कमजोर आदमी अधिक डरता है; इसलिए सब को शक्तिशाली वीर बनने का प्रयत्न करना चाहिये।
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