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- मोक्ष मार्ग में बीस कदम - [धन होने पर भी जो न दान करता है और न भोग करता है, उसका वह धन है ही नहीं (उस धन का वह मालिक नहीं है)। वह (कंजूस) तो घास का कृत्रिम पुरुष (पुतला) है, जो दूसरों के लिए धान्य (फसल) की रखवाली करता है।]
ज्यों-ज्यों व्यक्ति दान करता है, त्यों-त्यों उसकी आत्मा उज्जवल होती जाती है। बादलों के उदाहरण से यह बात बहुत अच्छी तरह से समझाई गई है :--
किसिणिजन्ति लयन्ता उदहिजलं जलहरा पयत्तेणम्। धवली हुन्ति हु देन्ता देन्तलयन्तरं पेच्छ।।
-वज्जालग्गम् (सावधानी पूर्वक समुद्र के जल को लेते हुए मेघ काले हो जाते हैं; किन्तु जल बरसाते हुए उज्जवल हो जाते हैं। दाता और आदाता के अन्तर को देखो।)
गृहस्थ का धर्म क्या है ? दान। यदि दान न करने वाले भी गृहस्थ कहा जा सकता हो तो फिर पक्षी भी गृहस्थ है; क्योंकि उसका भी घर (गृह घोंसला) तो होता ही है :
जइ गिहत्थु दाणे विषु जगि पणिज्जइ कोइ। ता गिहत्थु पंखिवि हवइ जें घरू ताहवि होइ।
-सावय धम्मदोहा उत्तम पुरुष वे हैं, जो याचक की आवश्यकता का अनुमान कर के माँग ने से पहले ही उसे आवश्यक वस्तु देने का खयाल रखते हैं :--
मीयतां कथमभीप्सितमेषाम् दीयतां द्रुतमयाचितमेव। तं धिगस्तु कलयन्नपि वाञ्छामर्थिवागवसरं सहतें यः॥
-मैंषधीयचरितम् [किसी भी प्रकार इन (याचकों) के इष्ट का अनुमान कर लीजिये और फिर शीघ्र ही बिना मांगे वह इष्ट वस्तु इन्हें दे दीजिये। उसे धिक्कार हो जो याचक की इच्छा जानने के बाद भी याचना के शब्दों की प्रतीक्षा करता है- याचक को माँगने का अवसर देता है।] बिना माँगे देने वाला दानी उत्तम होता है:
उत्तमोप्रार्थितो दत्ते, मध्यमः प्रार्थितः पुनः। याचकैर्याच्यमानोपि दत्ते न त्वधमाधमः।
-चन्द्रचरितम् [बिना माँगै देनेवाला उत्तम, माँगने पर देनेवाला मध्यम और याचकों के द्वारा माँगा जाने पर भी जो नहीं देता, वह अधमाधम है (नीचातिनीच पुरुष है।)]
'रहिमन' छाप से अब्दुर्रहीम खानखाना ने हिन्दी में नीति के बहुत अच्छे दोहे लिखे हैं। उनमें से एक दोहा यह है :
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