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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir .दान. पर वही इस तरह मुरझा जाता है, मानो क्रिस्टल आइल पी लिया हो। दान न देने के लिए बाजार की मन्दी आदि हजार बहाने बनाये जायेंगे; परन्तु आयकर अधिकारी ने बहीखातों में रोंग एन्ट्री का फतवा देकर कानूनी कार्रवाई का कागज आगे बढ़ाने की धौंस दे दी हो तो उस कागज पर पेपरवेट रखते समय कोई बहाना याद नहीं आयगा? वह दस हजार रु. भी माँग ले तो कृष्णार्पणमस्तु! याद रखने की बात यह है कि ऐसे मजबूरी में दिये गये दान से कोई पुण्य नहीं होता। भले ही वह गुप्तदान हो; परन्तु अनुकम्पा से प्रेरित होकर जो गुप्तदान (अर्थात् यशोभिलाषा से मुक्त रहकर दान) किया जाता है, उससे इसमें जमीन आसमान का अन्तर है । वह पुण्योपार्जन के लिए किया जाता है और वह पाप पर पर्दा डालने के लिए। वह स्वेच्छा से हर्षपूर्वक दिया जाता है। उसमें गौरव का अनुभव होता है और इसमें दीनता का। दाता को दान से गौरव प्राप्त होता है, उसका वर्णन एक कवि ने इन शब्दों में किया गौरवं प्राप्यते दानात न तु वित्तस्य सञ्चयात्। स्थितिरुच्चैः पयोदानाम् पयोधीनामधः स्थितिः॥ __ -सूक्तिमुक्तावलिः [दान से ही गौरव प्राप्त होता है, धन का संग्रह करने से नहीं। यही कारण है कि (दाता) बादल उच्च स्थान पर (आकाश में) रहते हैं और समुद्र नीचे।] दान, भोग और नाश- ये तीन ही धन की गतियाँ मानी जाती हैं, धन का जो दान या भोग नहीं करता, उसके धन की तीसरी गति होती है अर्थात् उसका धन नष्ट हो जाता दातव्यं भोक्तव्यम् सति विभवे सञ्चयो न कर्त्तव्यः। पश्येह मधुकरीणाम् सञ्चितमर्थ हरन्त्यन्ये॥ -शागधरपद्धतिः [धन होने पर दान करना चाहिये या भोग करना चाहिये; परन्तु संग्रह नहीं करना चाहिये। घेखो, यहाँ मधुमक्खियों के संचित धन (शहद) को दूसरे ही छीन ले जाते हैं।] खेत की रक्षा के लिए खेत में किसान घास का एक पुतला बना देते हैं, जो खेत का अनाज न खुद खाता है और न दूसरों को ही देता है। दान-भोग से बचनेवाले पुरुष की उससे सुलखा करते हुए कहा गया है : यो न ददाति न भुङ्क्ते सति विभवे नैव तस्य तद् द्रव्यम्। तृणमयकृत्रिमपुरुषो रक्षति सस्यं परस्यार्थे । -शगर्डधरपद्धतिः १०७ For Private And Personal Use Only
SR No.008726
Book TitleMoksh Marg me Bis Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages169
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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