________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
- मोक्ष मार्ग में बीस कदमहजार चूड़ियों के खनकने की प्रचण्ड ध्वनि एक साथ उठी। उससे नमिराज का सिरदर्द बढ़ने लगा, अशान्ति बढ़ने लगी।
जब मन्त्री को अशान्ति का कारण मालूम हुआ तो द्वारपाल के द्वारा उसने अन्तःपुर में सूचना भिजवा दी। दो-तीन मिनिट में ही सूचना पर अमल हो गया । ध्वनि बिल्कुल बन्द हो जाने पर राजा को सन्देह हुआ कि कहीं चन्दन की घिसाई बन्द तो नहीं कर दी गई है ? उन्होंने पूछा भी।
मन्त्री ने स्पष्ट किया :- “महाराज! चन्दन की घिसाई तो अब भी चल रही है; किन्तु चूड़ियों की प्रचण्ड कर्कश ध्वनि इसलिए नहीं आ रही है कि प्रत्येक रानी ने प्रत्येक हाथ में एक-एक चूड़ी को छोड़ कर शेष चूड़ियां उतार कर रख दी है ।"
इससे मिथिलानरेश विचारमग्न हो गये। सोचने लगे कि शान्ति एकाकीपन में हैअनेकता में नहीं। संसार के परिवार के बीच रहकर शान्त रहना अत्यन्त कठिन है। व्याधि (रोग) मिटते ही अनेकता के त्याग का परिवार छोड़ने का उन्होंने संकल्प कर लिया।
- संकल्प की पूर्ति के लिए दाहज्वर शान्त होते ही परिवार का, विपुल सम्पत्ति का, राजमहल का त्याग करके वे साधु बन गये और फिर :---
संजमेण तवसा अप्पाणं भावमाण विहरइ॥ [संयम (चारित्र्य) और तप से आत्मा को भावित (पवित्र) करते हुए वे विचरण करने लगे]
दूसरों की भलाई के लिए किया जाने वाला त्याग, त्यागी को इस संसार में चिरस्मरणीय बना देता है।
एक किसान था। उसके घर में गेहूँ का एक बोरा भरा पड़ा था; फिर भी वह भूख के मारे तड़प-तड़प कर मर गया। लोगों ने उसे कंजूस समझा और महान् मूर्ख भी; परन्तु जैसा लोग समझते हैं, वह सर्वत्र सही नहीं होता।
असल में गेहूं होते हुए भी भूख से सूखकर-देह छोड़ने वाला वह किसान बहुत बड़ा त्यागी निकला । यह रहस्य तब प्रकट हुआ, जब राजपुरुष उस बोरे को उठाकर ले जाने लगे। बोरे के नीचे किसान के हाथ से लिखी एक चिट्ठी मिली। उसमें लिखा था :- “अभी अकाल का समय चल रहा है। यदि मैं इस बोरे के अनाज को खा जाता तो अगली फसल में बोने के लिए किसी के पास अनाज का एक दाना भी न रहता। सभी किसानों को बीज के लिए भरपूर अनाज मिल सके इसी दृष्टि से मैं भूखा रहा। अब भूख असह्य हो जाने से मैं अपने प्राण छोड़ रहा हूँ। गाँव के सब किसानों को यह गेंहूँ बोनी (बुवाई) के अवसर पर बराबर-बराबर बाँट दिया जाय। बस, यही मेरी भावना है- अन्तिम इच्छा है। सब सुखी रहें।"
चिट्ठी का यह मैटर सुनते ही सब लोग उसके त्याग की दिल खोल कर प्रशंसा करने लगे। किसी इंग्लिश विचारक की सूक्ति है :
१०४
For Private And Personal Use Only