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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandiri .त्याग. पति के अहंकार को चोट लगी। वह भी गुस्से में गालियाँ बरंसाने लगा। पत्नी भी पीछे न रही उसने चूल्हे में से जलती लकड़ी खींचकर हाथ में ले ली। उसकी आक्रमक मुद्रा से भयभीत पतिदेव भूखे ही अपने भवन से वन की ओर भाग खड़े हुए। पत्नी ने पीछा किया। वे रास्ते में एक नदी के तट पर जल्दी-जल्दी रेत हटाकर उससे बने खड्डे में छिप गये । पतिदेव के न दिखाई देने पर पत्नी घर लौट गई। पतिदेव को शीतल मन्द पवन के झोंको से नींद आ गई। वे दौड़-धूप से थके हुए थे; इसलिए सोये। आधी रात बीतने के बाद उधर चार चोर आये। नदी तट पर बैठकर उन्होंने धन का बँटवारा किया और अपने-अपने हिस्से के धन की पट्टलें बाँध लीं। इधर सुषुप्ति समाप्त होने के बाद पतिदेव की स्वप्नावस्था प्रारंभ हुई। सपने में उन्हें क्रुद्ध पत्नी का वही विकराल रूप दिखाई दिया। डर के मारे वे बड़बड़ाये :- “खा लूँगा! खा लूँगा!! ठहर जा!!!'' उनका आशय था कि- यह जलती हुई लकड़ी फेंक दे, मैं लौकी की शाक खा लूँगा, मुझे मत मार, ठहर जा; परन्तु चोरों ने उसे किसी भूत की आवाज समझकर वहाँ से भागना ही उचित माना। धन की चारों पुट्टलें वहीं छोड़ कर वहाँ से वे नौ-दो-ग्यारह हो गये। चोरों की भगदड़ से पतिदेव की नींद खुल गई। वे धन की चारों पोटलें उठाकर घर पहुँचे। पत्नी से उन्होंने कहा – “यह लो त्याग का फल!" धन देखकर पत्नी बहुत प्रसन्न हुई। उसने उसी समय ताजा भोजन मिठाई सहित बनाकर पतिदेव को प्रेम से परोसा। पतिदेव ने खाना शुरू कर दिया। पत्नी उनके पास बैठ कर पंखा डालती हुई बोली : ऐसा सोगन जरूर करना धन की गाँठे घर में धरना त्याग करूँगी में भी नाथ! चला करूँगी तुमारे साथ। आध्यात्मिक सुख के लिए त्याग होना चाहिये, भौतिक सुख के लिए नहीं- ऐसा वह अनपढ़ पत्नी बेचारी क्या समझे? आध्यात्मिक सुख के लिए एकाकी साधना आवश्यक है। अनेकता में झंझट है- अशान्ति ___नमिराज मिथिला के शासक थे। रोग, बुढापा और मृत्यु प्रत्येक प्राणी के पीछे लगे रहते है। नमिराज भी इसके अपवाद नहीं रहे। एक दिन भयंकर दाहज्वर ने उनके शरीर को आ घेरा। वैद्यों ने चन्दन का लेप करने की सलाह दी। पति सेवा का पुण्य लूटने के लिए अन्तःपुर की सभी एक हजार रानियाँ चन्दन घिसने बैठ गई। कुल दो हजार हाथों में पहनी हुई आठ १०३ For Private And Personal Use Only
SR No.008726
Book TitleMoksh Marg me Bis Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages169
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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