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८३ समझकर उसे उठा लाई थी। छत पर मरा साँप उसे दिख गया तो हार पटक कर वह साँपको उठा ले गई थी।
हार लाकर उसे ससुरजी के चरणों में रखती हुई बहू बोली।
"लीजिये, यह आपके नियमका फल । यदि खाली हाथ घरमें न आनेका आपने नियम न लिया होता और उसका पालन न किया होता तो यह हार कैसे मिल सकता था ?"
यह सुनकर ससुरजी भाग्यवादी से पुरुषार्थवादी बन गये।
किसी नगर में दो विद्वान् रहते थे। उनमें से एक भाग्यवादी था और दूसरा पुरुषार्थवादी ।
एक बार राजाकी मध्यस्थता में दोनों ने शास्त्रार्थ किया ।
भाग्यवादीका कथन था : स्त्रीको मूछ नहीं होती, हथेली में बाल नहीं उगते, आमके वृक्ष पर बेर नहीं लगते, सूर्य पश्चिम में नहीं उगता, बुढापे में बाल सफेद हो जाते हैं, जन्म लेनेवाला हर प्राणी एक दिन मरता है - इन सब बातोंसे सिद्ध होता है कि सब कुछ भाग्यपर ही निर्भर है। कुछ आदमी जन्म से ही काने, अन्धे, बहरे, लले या लंगड़े होते हैं अथवा किसी सेठ या भिखारी के घर में पैदा होते हैं तो यह सब भाग्य का ही चमत्कार है :
भाग्यं फलति सर्वत्र न विद्या न च पौरुषम् ॥ [सब जगह भाग्य ही फलता है, न विद्या फलती है और न मेहनत ही !]
और भी कहा है :
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