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करते हुए जब वह औजार घिस जायगा, उसी दिन तुम्हें धन की कमी नहीं है-ऐसा अनुभव होगा; लेकिन शर्त यह है कि इस बीच तुम और किसी से कोई अनुष्ठान मत कराना।"
धीराजी ने वैसा ही किया और सचमुच वे धनवान् बन गये।
इस घटना से पता लग जाता है कि किसी मन्त्रने नहीं, किन्तु निरन्तर श्रम ने ही धीराजी को धन की प्राप्ति कराई। इष्टदेव का नामस्मरण भी उन्हें श्रम में लगाये रखने के उद्देश्य से ही कराया गया था।
एक जगह किसी बहू का ससुर बहुत अधिक भाग्यवादी था। वह समझता था कि सारा खेल भाग्य का है। अपने किये से कुछ नहीं हो सकता। बहू उनसे विपरीत पुरुषार्थवाद में ही विश्वास करती थी। उसने एक दिन ससुरवीं से कहा :
__ "आप खाली हाथ घर न लौटने का नियम बना लें। किसी दिन कुछ न मिले तो एक मुठ्ठी धूल या रेत ही उठा लायें ।"
___ ससूरने नियम ले लिया । दिनभर कोई कमाई नहीं हुई । लौटते समय धूल उठाने के लिए वे सड़क पर झुके ही थे कि एक मरे साँप पर उनकी नज़र पड गई। बहू को चिढाने के लिए वे उसीको उठाकर घर ले आये । बहने उसे छतपर डाल दिया ।
थोड़ी देर बाद पत्थरकी तरह छत पर कुछ गिरने की आवाज आई; क्योंकि छत लोहेके चद्दर की बनी हुई थी। बहूने ऊपर चढ़कर देखा तो उसे रत्नोंका एक सुन्दर हार दिखाई दिया । एक चील हारके लाल रत्नोंको मांसके टुकडे
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