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७३ शिष्याओंको पाराम से नींद आ गई; परन्तु वह साध्वी खड़ी-खड़ी शुक्ल ध्यानमें आरूढ हो गई। फलस्वरूप सूर्योदय होने तक उसकी आत्मा निर्मल हो गई। उसे अन्तिम ज्ञान प्राप्त हो गया। केवलज्ञान पा लेनेके कारण उसके लिए मोक्षका रिजर्वेशन हो गया । विनय, अनुशासन, सेवा और चिन्तन के बल पर; वह शिष्या नई थी, फिर भी सबसे आगे बढ़ गई । अपनी गुरुणीजी के लिए भी वन्दनीय बन गई । कहा है :
जं मे बुद्धाणुसासन्ति सीएण करसेण वा ।
मम लाभुत्ति पेहाए पयओ तं पडिस्सुणे ॥ [ठंडी या कठोर वाणी में ज्ञानी (गुरु) जो अनुशासन करते हैं, उससे मेरा लाभ है ऐसा सोचकर सावधानीपूर्वक उसका प्पालन करना चाहिये
मित्र उसीके बनते हैं, जो विनीत हो-अनुशासित हो ।
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