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७१ गुरु ने कहा : “पीठ को पाँवसे छूने में तुझे पाप लगता है और जीभपर पाँव रखने में क्या कुछ नहीं लगता ?"
शिष्य ने पूछा : “जीभपर पाँव रखनेका क्या अर्थ है ?"
गुरु ने कहा : “जीभपर पाँव रखने का अर्थ है आज्ञा का उल्लंघन करना । वही तुम कर रहे हो ।”
यह सुनते ही लज्जित होकर शिष्य उठा और उसने गुरुकी पीठ पर पाँव रख दिया ।
गुरुका आदेश उल्टा-सुल्टा हो तो भी अन्त में उससे अपना लाभ ही होता है यह बात एक दृष्टान्त से स्पष्ट करना चाहूँगा।
फकीर अहमद बल्खी से उनके एक भक्तने कहा : “मैं बहुत निर्धन हूँ। कृपया धन पाने का कोई उपाय बताइये।"
बल्खी : "धन पाने के जितने भी उपाय तुम जानते हो, उन्हें अलग-अलग कागज के टुकड़ोंपर लिखकर उन सारे टुकड़ोंको एक लोटे में डाल दो और फिर मेरे पास वह लोटा ले आओ।"
वैसा ही किया गया, बल्खीने उस लोटे में हाथ डाल कर एक टुकड़ा निकाला। टुकड़े पर लिखा था "लूट मार" बस, फकीर ने उसे आदेश दे दिया की यही करो ।
भक्तको इस विचित्र आदेश से आश्चर्य तो हुआ; परन्तु आज्ञापालन कर्तव्य है ऐसा मानकर वह एक डाकूदल में शामिल हो गया । दलके नियमानुसार यहाँ भी उसे दल के सरदारकी आज्ञाका पालन करने की प्रतिज्ञा लेनी पड़ी। धन्धा शुरू हो गया। उसी सिलसिले में एक दिन कुछ व्यापारियोंको पकड़ा गया । बन्दूक के डरसे सबने अपना धन
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