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चलूँगा । रास्ते में कहीं कुछ हो गया तो मैं सँभाल लूँगा
तुम्हें ।”
जाटनी : "नहीं, मैं अकेली जाऊँगी । मुझे रास्ते में कुछ नहीं होगा । मेरे लिए ढूँढकर जल्दी से एक बैल ला दो ।"
जाट बैल ले आया । जाटनी ने उसे पानी में उतार कर उसकी पूँछ पकड़ ली। बैलके साथ जब वह बीच धार में पहुँची, तभी इधर से जाटने चिल्लाकर कहा "बाढ़ बहुत तेज़ है । बैलकी पूँछ कसकर पकड़ना । ऐसा न हो कि हाथ छूट जाय और तुम बह जाओ ।"
जाटनी ने यह सुनते ही चिल्लाकर कहा : "आज तक कभी तुम्हारा कहना माना है, जो अब मानूँगी ?"
फिर पूँछ छोड़कर बाढ़ में बह गई और बहती हुई समुद्र में पहुँचकर डूब गई । बड़ों के अनुशासन में न रहने वालोंकी ऐसी ही दुर्दशा होती है ।
कभी-कभी श्रालस्य के कारण भी आज्ञा का पालन नहीं किया जाता और "चोरी की चोरी और मुँहजोरी !" इस कहावत को चरितार्थ करते हुए अपने पक्ष में तर्क भी प्रस्तुत किया जाता है, जैसा एक शिष्य ने किया था ।
घटना इस तरह हुई कि एक गुरु की पीठमें दर्द हो रहा था । उसने शिष्य से कहा कि मैं उल्टा लेट जाता हूँ और ส मेरी पीठ को पाँव से दबा दे ।
शिष्य आलसी था; परन्तु उसने तर्फ प्रस्तुत किया : "गुरुदेव ! मैं आपकी पीठको पाँव कैसे लगा सकता हूँ ? आप वन्दनीय हैं । पाँवसे पीठको छूने में आप की आशातना होगी और मुझे पाप लगेगा ।"
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