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धिक् धाये तुम यों अनाहूत धो दिया श्रेष्ठ कुलधर्म धूत राम के नहीं काम के सूत कहलाये ! हो बिके जहाँ तुम बिना दाम वह नहीं और कुछ हाडचाम !
कैसी शिक्षा ? कैसे विराम पर प्राये ? इससे तुलसीदास की आँखें खुल गई। उनकी कामासक्ति रामासक्ति में परिवतित हो गई। संसार से विरक्त होकर वे संन्यासी बन गये। उन्होंने खूब अध्ययन किया और फिर अनेक काव्य ग्रन्थों की रचना की । उनका जीवन पवित्र और अनुशासित हो गया। ___चाणक्य ने अनेक सूत्रों में यह प्रतिपादित किया है कि इन्द्रियों को जीतना ही सुखका मूल कारण है।
सुखस्य मूलं धर्मः ॥ धर्मस्य मूलमर्थः ॥ अर्थस्य मूलं राज्यम् ॥
राज्यस्य मूलमिन्द्रियजयः ॥ धर्म से अर्थात परोपकार से ही सुख प्राप्त होता है। हम दूसरों की सहायता करते हैं तो दूसरे हमारी सहायता करते हैं । परस्पर सहायता पाकर सब सुखी हो जाते हैं ।
सहायता अर्थ (धन) से की जाती है; इसलिए धर्म का मूल अर्थ माना गया है। निर्धन व्यक्ति दूसरों का उपकार नहीं कर सकता।
घन बडे परिश्रम से प्राप्त होता है। प्रत्येक व्यक्ति उसे सुरक्षित रखना चाहता है, चोरों और डाकुओं की पहुँचसे उसे बचाना चाहता है। यह कार्य राज्य करता है। वह पूरी
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