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किन्तु ट्रेन की तेज़ रफ्तार के कारण वह दूसरे स्टेशन पर खड़े एक कुली के गाल पर लगा !"
इस प्रकार कुछ भी बोलना वाणी का असंयम हैदुरुपयोग है।
एक योगी था । भक्तों में से एकने पूछा : "बाबाजी! आपकी अवस्था क्या है ? बताने की कृपा करें।"
योगी : "अवस्था तो मुझे याद नहीं रही; परन्तु सीताजी के विवाहोत्सव में जो भात खाया था, वह अब तक अच्छी तरह से याद है।"
यह सुनते ही दूसरे एक चालाक भक्त ने कहा : "वाह बाबाजी ! खूब गप्प लगाई। अरे वहाँ परोसने वाला तो मैं ही था ! आपको मैंने वहाँ कहीं नहीं देखा।"
एक ऐसे ही गप्पी बेटे को उसके बापने घर से निकालते हुए कहा कि गप्प छोड़कर ही घर में पाँव रखना।
बेटा दिन-भर इधर-उधर घूमता रहा। शाम को घर आने पर बापके पूछने पर कहा : "पिताजी! आपकी आज्ञा पाकर मैं गप्पको जबर्दस्ती पकड़ कर जंगल में छोड़ने के लिए गया; परन्तु हाथसे छूटते ही वह हथिनी बनकर मुझे पकड़ने के लिए अपनी सूड उठा कर मेरे पीछे दौड़ी। मैं भी उससे बचने के लिए तेजी से भाग कर एक बड़ के झाड़ पर चढ़ गया। वह भी मेरे पीछे-पीछे झाड़ पर चढ़ी। मैं छलाँग लगाकर नीचे कूदा। वह भी कूदी; परन्तु आपके भाग्य से उसकी पूँछ किसी शाखा में अटक गई और मैं भागता हुआ आपके पास चला आया।"
बापने सिर ठोक कर कहा : "अरे तू गप्प छोड़ने गया था या पकड़ने ?"
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