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लँगड़े के समान ।
शरीर अन्धे के समान है और जीव घर में आग लगने पर लँगडा अन्धे के कन्धे पर सवार होकर भाग सकता है और इस प्रकार अन्धे को भी बचा सकता है और अपने आपको भी । आत्मा शरीर में बैठ कर ही सारे कार्य करती है । बिना शरीर की सहायता के वह कुछ नहीं कर सकती । शरीर भी बिना आत्मा के मुर्दा कहलाता है और जला दिया जाता है ।
आत्मा यदि अच्छे कार्यों के लिए प्रेरित करे तो शरीर अच्छे ही कार्य करेगा। अच्छे कार्यों के लिए प्रेरित वही आत्मा करती है, जो निर्मल हो - निर्विकार हो- दयालु हो । आत्मदर्शन का फल तीर्थयात्रा से भी अधिक होता है ।
मन मथुरा दिल द्वारका काया काशी जान । दसों द्वारका देहरा तामें ज्योति पिछान ॥
इस आत्मज्योति को जो पहिचान लेता है, वह अपना जीवन परोपकार में लगा देता है और इस प्रकार सर्वत्र मित्रों की सृष्टि करता है ।
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