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४. अनुशासन
शासन के ग्रनुकूल व्यवहार को अनुशासन कहते हैं । आप बच्चे को जब स्कूल भेजते हैं और वह नहीं जाना चाहता तो क्या करते हैं ? चाकलेट देते हैं । चाकलेट देने पर भी यदि वह जाने से इन्कार कर दे तो आप उसके गालों पर दो तमाचे लगा कर भेजते हैं ।
जब तक विद्या में उसकी रुचि जागृत नहीं हो जाती, तब तक प्रलोभन और भय से उसे अनुशासित रखते हैं । रुचि जागृत होने पर तो वह स्वयं ही स्कूल जाने लगता है । उसे श्रात्मानुशासन कहते हैं ।
भय और प्रलोभन द्वारा थोपे हुए अनुशासन के स्थान पर स्वयंप्रेरणा से स्वीकृत अनुशासन ही अधिक श्रेष्ठ होता है । परन्तु आज तो एक फैशन चल पड़ी है कि अनुशासन यह तो बन्धन है । हमें स्वतन्त्रता चाहिए । परन्तु वह क्यों भूल जाता है कि : सवा नौ महीने तक गर्भ के बन्धन में रहने के बाद पाँच वर्ष तक माता के, पच्चीस वर्ष तक पिता के, साठ वर्ष तक पत्नी के और फिर उसके बाद पुत्र के अनुशासन में व्यक्ति रहता है ।
धर्म का भी अनुशासन होता है । कहते हैं : "जैनं जयति शासनम् ॥" [ जैनशासन जय पा रहा है ]
जैनशासन के अनुसार जिसका व्यवहार होता है, वह जैनधर्म से अनुशासित ही "जैन" कहला सकता है । आप जैन किसे समझते हैं ? जिसके माँ-बाप जैन होते हैं, उसे;
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