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हंस ने एक दिन उल्लसे कहा : "अाज सूर्य की धूप बहुत तीव्र लग रही है !”
उल्लू : “कहाँ है तुम्हारा सूर्य ?"
हंस : “वह आकाश में रहता है, किन्तु उसका प्रकाश धरती पर पड़ता है।"
उल्लू : "मैंने न तो सूर्य देखा है और न प्रकाश । न सूर्य से प्रकाश प्रमाणित हो सकता है और न प्रकाश से सूर्य । इसलिए दोनों प्रसिद्ध है।"
फिर वह उल्लू हंसको उल्लुओं की एक विशाल सभा में ले गया। वहाँ उसने कहा : "इन से मिलिये। ये हंस बाबू हैं। हम लोगों के बीच ये सूर्य को सिद्ध करने आये हैं। यदि आप अपने अनुभव से सूर्य को जानते हों तो इनको बात का ज़रूर अनुमोदन करें।"
यह सुनकर उल्लूओं ने एक स्वर से चिल्लाकर कहा : "सूर्य एक कल्पित नाम है । उसका कहीं कोई अस्तित्व नहीं है। हममें से कभी किसी को सूर्य का अनुभव नहीं हुआ। हम हंस बाबू की बात का अनुमोदन नहीं कर सकते !"
दृष्टान्त का आशय यह है कि सूर्य के समान आत्मा का अस्तित्व है, परन्तु चार्वाक दर्शन के अनुयायी उसका अस्तित्व स्वीकार नहीं करते तो भले ही न करें, उससे आत्मा का अस्तित्व समाप्त नहीं हो जाता।
उद्धरेदात्मनात्मानम नात्मानमवसादयेत ।
प्रात्मैव ह्यात्मनो बन्धु-रात्मैव रिपुरात्मनः॥ [आत्मा से ही आत्मा का उद्धार करना चाहिये । प्रात्मा का पतन नहीं होने देना चाहिये । आत्मा ही आत्मा का बन्धु है और आत्मा ही प्रात्मा का शत्रु है। ]
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