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प्रभु का प्रवचन उनके अन्तस्तल से प्रकट होता है, शास्त्रों से नहीं । सर्वज्ञता की प्राप्ति के बाद ही उन्हों ने प्रवचन प्रारंभ किये थे । हमारे प्रवचन शास्त्रों के आधार से होते हैं; क्योंकि हम छद्मस्थ हैं और सर्वज्ञता अभी हम से कोसों दूर है।
सर्वज्ञता ही प्रवचन की वास्तविक योग्यता है । योग्यता न होने पर भी हम जो प्रवचन करते हैं, वह हमारी अनधिकार चेष्टा नहीं हैं; क्योंकि हम प्रभुकी वाणी आपके कानों तक पहुंचाने का काम करते हैं। एक पोस्टमैन की तरह प्रभु का सन्देश आपके हृदय तक पहुंचाते हैं।
प्रभु ने बताया था कि आत्मज्ञान का अभाव ही समस्त दुःखों का सर्जक है। एटमबम बनाने वाले ने नागासाकी और हिरोशिमा का ध्वंस टेलीविज़न पर देख कर कहा था : "मैं निश्चय ही नरक में जाऊंगा!" यदि उस आविष्कारक में आत्मज्ञान का प्रकाश होता तो वह ऐसे संहार के अस्त्र का निर्माण कभी न करता। __आप मन्दिर में जाकर तीन बार एक शब्द बोलते हैं, "निसिही" वह तीन बार क्यों बोली जाती है ? यदि वह समझकर बोली जाय तो हमें आत्मा के निकट पहुँचा सकती है। कैसे ? देखिये-- ___ पहली "निसिही" मन्दिर के द्वार पर बोली जाती है। उसका आशय है-संसार की चिन्ताओं का सर्वथा निषेध । फिर मन्दिर की सफाई आदि से निवृत्त होने के लिए दूसरी "निसिही" बोली जाती है। उसके बाद द्रव्यपूजा (चन्दन, पुष्प, अर्चना) से निवृत्त होने के लिए तीसरी बार "निसिही' बोलकर भावपूजा (ध्यान) में प्रवेश किया जाता है। उस
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