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४३ एक बात सदा याद रखनी चाहिये कि आत्मविकास ऋमिक होता है, प्राकस्मिक नहीं । जो आदमी म्युनिसिपैलिटी का भी मेम्बर न हो, वह कहे कि मुझे प्राइममिनिस्टर बनना है तो मैं उससे कहूँगा कि पहले आप मेन्टल होस्पिटल हो आइये, आत्मा को परमात्मा बनाना भी कोई आसान काम नहीं है। उसके लिए तन्मयतापूर्वक चिरकाल तक निरन्तर साधना करनी पड़ेगी।
चारों ओर अँधेरा छाया हो तो क्या वह धबराहट या चिल्लाहट से मिट जायगा ? क्या उसे लाठी के प्रहारों से या तलवार के तेज बारों से भगाया जा सकेगा ? क्या पिस्तौल या बन्दूक तानकर उसे डराया धमकाया जा सकेगा? नहीं-नहीं; कभी नहीं । अन्धकार नष्ट होगा दीपक से । आत्मा के चारों ओर जो अज्ञान का और मिथ्यात्व का अन्धकार छाया हुआ है, वह तभी नष्ट होगा, जब विचाररूपी दीपक प्रज्वलित किया जाय । विचार ही विकार को नष्ट कर सकता है प्रात्मा को उज्जवल बना सकता है ।
प्रवचन के माध्यम से प्रभुने अपने विचार प्रकाशित किये थे, प्रवचन का उद्देश्य क्या था ? कहा है : सव्वजगजीव-रक्खण-दयट्टयाए भगवया पावयणं सुकहियम् ॥ [संसार के समस्त जीवों की रक्षारूप दया के लिए भगवान ने भली भाँति प्रवचन किया है]
सोनेकी जो सिल्ली जल में डूब जाती है, उसीका, ठोकपीटकर बनाया गया, वरक तैरता है। प्रवचन के प्रहार से आत्मा को भी वरक की तरह बना दिया जाता है, जिस से वह संसाररूपी सरोवर में तैरती रह सके ।
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