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ज्ञान- दर्शन - चारित्र का पुंज है श्रात्मा के भीतर । आँखों
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से हम दुनिया को भले ही देख लें आत्मा को नहीं देख
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सकते |
उसे देखने के लिए मन में निर्मलता हो- यह ज़रूरी है । जो शुद्ध होता है, वही सिद्ध बन सकता है - सिद्धि प्राप्त कर सकता है ।
अन्न का उत्पादन ही खेती का लक्ष्य होता है । घासफूस तो वहाँ स्वयं ही उत्पन्न हो जाती है । घास-फूस के लिए कोई खेती नहीं करता । इसी प्रकार प्रत्येक धार्मिक कार्य का लक्ष्य आत्मशुद्धि होता है । समृद्धि, सुयश आदि तो उसके आनुषङ्गिक फल है ।
लैंस के द्वारा सूर्य की किरणें एकत्र करने पर उनमें दाहकशक्ति पैदा हो जाती है । ठीक उसी प्रकार मन की किरणें ध्यान रूपी लैसके द्वारा एकत्र करने पर दुर्वासनाएं जलने लगती हैं और आत्मा शुद्ध होने लगती है ।
प्रतिक्रमण का क्या अर्थ है ? प्रति (उलटी दिशा में) क्रमण ( चलना ) आत्मशुद्धि के लिए होता है । अब तक हम संसार की दिशा में दौड़ते रहे; किन्तु अब हमें दिशा बदलनी है | परमात्मा की, मोक्ष की या आत्मा की दिशा में चलना है ।
प्रतिक्रमण हर रोज क्यों किया जाता है ? यह पूछने वाले यदि नाक पर मक्खी बार-बार बैठ जाय तो क्या वे उसे बार-बार नहीं उडाते ? मन पर विषय - कषाय की मक्खियाँ आकर बैठ जाती हैं । सामायिक, प्रतिक्रमण आदि धार्मिक क्रियाओं से उन्हें बार-बार उड़ाने का प्रयास किया जाता है ।
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