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हँसने का कारण पूछने पर पत्नी ने कहा : "मेरे पिताजी ने तो आपको परम विरक्त समझकर आपसे मेरा विवाह किया था; परन्तु मैं देख रही हूँ कि आपको भी कल की फिक्र है । फिक्र का जो फाका करे, वही फकीर कहलाता है । जिस में फिक्र हो, वह फकीर ही क्या ? मच्छी को पानी में कौन भोजन देता है ? अजगर किसकी चाकरी करता है ? पक्षी किसका काम करता है घास कब कपड़ों की चिन्ता करती है ? जब ये जानवर और घास तक कल की चिन्ता से मुक्त हैं, तब केवल मनुष्य ही क्यों कल की चिन्ता में घुले ? जब ये संग्रह नहीं करते तो मनुष्य ही क्यों परिग्रही बने ?"
ऐसा कह कर दुलहनने वह रोटी उठा कर कुत्ते के मुँह में रख दी । फकीर को अपनी भूल का भान हुआ । इससे उसका वैराग्य और भी पक्का हो गया । भविष्य में कल की चिन्ता न करने का उसने संकल्प कर लिया और फिर उसे निभाया भी ।
ऐसे ही एक अन्य अपरिग्रही फकीर का किस्सा भी सुनने योग्य है ।
उसके पास एक चादर थी। वह किसीने चुरा ली । फकीर ने थाने में चोरी की रिपोर्ट दर्ज करवाई । पुलीस ने चोर को पकड़ भी लिया । थानेदार ने चोर के सामने ही फकीर से पूछा : “आपकी कौन-कौन सी वस्तुएँ चोरी में चली गई थीं ?”
फकीरने कहा: “हजुर ! मेरी चादर, रजाई श्रौर धोती चली गई। इतना ही क्यों ? मेरा तौलिया, तकिया, आसन और छाता भी चला गया ! मैं तो पूरी तरह लुट गया साहब ! "
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