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यह सुनते ही चादर फेंकते हुए चोर ने कहा : "मैंने तो केवल चादर चुराई थी ! दूसरी वस्तुओं का मुझे पता नहीं।"
फकीर अपनी चादर उठा कर चलने लगा। थानेदार ने उसे रोक कर पूछा : “जब आपकी चादर ही गई थी तो ढेर सारी दूसरी वस्तुएँ क्यों गिनाई ? फकीर होकर झूठ क्यों बोले ?"
फकीर ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया : “हुजूर ! मैं झूठ बिल्कुल नहीं बोला । यह जो चादर मेरे हाथ में आप देख रहे हैं, इसी में मेरी गिनाई हुई सारी वस्तुएँ मौजूद हैं।"
थानेदार : “मौजूद हैं तो निकाल कर बताइये । हम भी देख लें।"
"देखिये, शौक से देखिये।" कह कर फकीर ने ओढ़ कर बताया कि यही मेरी चादर और रजाई है; पहिन कर बताया कि यही मेरी धोती है; शरीर पोंछ कर बताया कि यही तौलिया है; तह करके बताया कि तकिया भी है और आसन भी ! अन्त में उसे सिर पर रख कर कहा कि यही मेरा छाता है।
यह सब प्रत्यक्ष देख सुनकर सभी सुनने वाले चकित हो गये। ___इस कथा में जो सन्देश है, वह विशेष ध्यान देने योग्य है। कहा गया है कि कमसे कम वस्तुओं का अधिक से अधिक उपयोग करना ही कुशलता है-बुद्धिमत्ता है-चतुराई है। साधु, मुनि, फकीर और संन्यासी का लक्षण है-अपरिग्रह अर्थात् न्यूनतम आवश्यक वस्तुओं की ही स्वीकृति । अनावश्यक
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