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है। लोभ से धनका संग्रह करके मनुष्य परिग्रही बनता है। परिग्रह के कारण नाना प्रकार के कष्ट सहता है। दुनिया में पूज्य वही बनता है, जो हर प्रकार के परिग्रह का त्याग कर देता है...आदि ।
श्रोताओं ने देखा कि उपदेशक की नज़र बार-बार खूटी की ओर दौड़ जाती थी। श्रोताओं में से एकने उठकर खूटी पर टॅगी पोटली उतारकर खोली तो उस में पाँच लड्डू बँधे हुए निकले। पूछने पर संन्यासीने बताया कि ये कलके लिए रख छोड़े है।
इतना सुनते ही उस अपरिग्रह का उपदेश देने वाले परिग्रही संन्यासी को अकेला छोड़ कर सब अपने-अपने घर चले गये।
कहते सो करते नही, मुह के बड़े लबार । काला मुंह हो जायगा, सांई के दरबार ॥
एक फकीर की ऐसी ही एक घटना सुनने में आई है । शाह सूजाने अपनी पुत्री. में वैराग्य की प्रबल भावना देखकर उसका विवाह एक फकीर से कर दिया।
नवविवाहिता दुलहनने फकीर की झोंपड़ी में पहुँचकर साफ-सफाई शुरू कर दी। उसी सिलसिले में उसे छींके पर पड़ी हुई एक रोटी दिखाई दी।
आश्चर्य प्रकट करती हुई वह पूछ बैठी : “पतिदेव ! यह क्या है ?"
फकीर बोला : “प्रिये ! कल सुबह नाश्ते के लिए यह रोटी रख ली गई है।"
दुलहन यह सुनकर खूब हँसी।
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