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से रहित होने के कारण चिरकाल से संचित मधु ( शहद ) नष्ट हो गया। इससे उदास होकर ही ये मधुमक्खियाँ अपने दोनों हाथ और दोनों पाँव घिस रही हैं !]
यह सुनकर सन्तुष्ट राजा भोज ने महाकवि को प्रचुर धन पुरस्कार के रूप में दिया।
दानं भोगो नाशस्तिस्रो गतयो भवन्ति वित्तस्य ।
यो न ददाति न भुङ क्ते, तस्य वृतीया गतिर्भवति ॥ [दान, भोग और नाश-ये तीन गतियाँ धन की होती हैं। जो व्यक्ति न देता है और न भोगता है, उसके धनका नाश हो जाता है]
खाये-खिलाये बिना जिसका धन नष्ट हो जाता है, उसे मधुमक्खियों के समान हाथ मल-मल कर पछताना पड़ता है।
___ दान या त्याग का उपदेश भी तभी प्रभावशाली होता है, जब उपदेशक स्वयं अपरिग्रही हो।
एक संन्यासी था। वह भिक्षार्थ बस्ती में जाता था। भिक्षा में उसे जो भी खाद्यसामग्री प्राप्त होती, उसे वह ले
आता था। खाने-पीने के बाद बची हुई एसी सामग्री, जो दूसरे दिन तक रखने पर खराब नहीं होती हो, बाँध कर एक खूटो पर टाँग देता था ।
उसकी झोंपड़ी में चूहे बहुत थे। उनसे खाद्यसामग्री को बचाना ही टाँगने का उद्देश्य था। फिर भी कभी-कभी कोई चंचल चूहा उछल-उछल कर खूटी तक पहुँच ही जाता था।
एक दिन की बात है। दर्शनार्थ आये लोगों की सभा में उस दिन संन्यासी उपदेश दे रहा था-लोभ पापका बाप
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