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गई और फिर प्रशंसक ही उन्हें भूल गये, दूसरे लोगों की तो बात ही दूसरी है।
सच्ची प्रशंसा त्यागी को मिलती है। मीटर की पट्टी बजाज की दुकान पर आपने देखी होगी। वह क्या करती है ? जिस-जिस को जरूरत होती है, उसे कपड़े फाड़-फाड़ कर बाँटने में बजाज की सहायता करती है; परन्तु स्वयं दिगम्बर रहती है-एक तार भी (एक पतला-सा धागा भी) अपने शरीर पर धारण नहीं करती।
दाता और अदाता का अन्तर देखना हो तो ऊपर बादलों को देखिये :
किसिणिज्जन्ति लयन्ता, उदहिजलं जलहरा पयत्तेणं । धवलीहुन्ति हु देन्ता, देन्तलयन्तन्तरं पेच्छ ।
-वज्जालग्गम् [बादल जब समुद्र से जल लेते हैं, तब काले हो जाते हैं
और जब देते हैं अर्थात् जल बरसाते हैं, तब सफेद होते जाते हैं। देखो, देने और लेने वालों में कितना अन्तर होता है ! ]
पड़ौसी के मकान के पास रहा हुआ गड्ढा यदि नहीं भरेंगे तो आपके मकान के गिरने का डर बना रहेगा-यह आप जानते हैं; इसलिये गाँठ के पैसे खर्च कर के भी वह काम करते हैं। यही बात समाज के लिए समझे। यदि स्वधर्मी बन्धु के पेट का गड्ढा न भरा गया तो आपका अस्तित्त्व भी खतरे में पड़ जायगा।
दान अनुकम्पा से होता है; परन्तु सार्मिक के प्रति वात्सल्य होता है :
"एगत्त सव्वधम्मा एगत्त साहम्मियवच्छलम् ॥"
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