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२. अपरिग्रह
आवश्यकता से अधिक वस्तुएँ अपने स्वामित्व में रखना परिग्रह है। इस परिग्रह से अभाव की स्थिति पैदा होती है, महँगाई बढ़ती है और दूसरों को आवश्यक वस्तुएँ नहीं मिल पाती ; इसलिये भी उसे पाप माना गया है। उस पाप से दूर रहना अपरिग्रह है । दान और त्याग का उपदेश परिग्रही को अपरिग्रही बनाने के ही लिए होता है। __ खुदा का अर्थ है - परिग्रह को छोड़कर खुद में आ अर्थात् अपनी आत्मा में रमण कर ।
वायुयान से की जाने वाली किसी शहर तक की साधारण यात्रा में भी जब दस-पन्द्रह किलोग्राम से अधिक लगेज नही ले जाया जा सकता, तब मोक्ष तक की यात्रा में कितनी भारहीनता की-कितने अपरिग्रहता की अपेक्षा होगी? इस की कल्पना की जा सकती है। ___ परन्तु परिग्रह का त्याग करने में बहुत विवेक की पावश्यकता होती है। वस्तुपाल तेजपाल ने साढ़े बारह करोड़ स्वर्णमुद्राएँ खर्च करके जिनमन्दिर बनवाया, जगडूशाह ने अकाल के समय सारा धन दे दिया और भामाशाह ने संकट के समय देश के गौरव की रक्षा के लिए महाराणा प्रताप के चरणों में अपनी संपत्ति चढ़ा दी ! इस प्रकार इन सबने स्थायी यश प्राप्त किया।
इससे विपरीत अभी कुछ वर्षों पहले अरबदेश के एक बादशाह ने चालीस करोड़ डालर खर्च कर के एक विवाहोत्सव आयोजित किया तो क्या हुआ ? क्षणिक प्रशंसा मिल
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