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मान्धाता स महीपतिः कृतयुगालंकारभूतो गत; सेतुर्येन महोदधौ विरचितः क्वासौ दशास्यान्तक: ? अन्ये चापि युधिष्ठरप्रभृतयो याता दिवं भूपते ! नैकेनापि समं गता वसुमती मुंज ! त्वया यास्यति ? [ सत्ययुग की शोभा बढ़ाने वाले राजा मान्धाता चले गये । जिसने समुद्र पर पुल बनाया था, वह रावणवध कर्ता राम कहाँ है ? और भी युधिष्ठिर आदि राजा स्वर्गवासी हो गये । हे राजा मुंज ! इन सबमें से किसी एक के साथ भी भूमि नहीं गई । यह केवल आपके साथ जायगी ! ]
कितना मार्मिक व्यंग्य था वह ! पढ़ते ही राजा मुंज का हृदय हिल गया था । इससे एक कविने इस नश्वरता की उपमा कटाक्ष से दी है :
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सत्यं मनोरमा रामाः सत्यं किन्तु मत्तानापा भङ्गिलोलं [ यद्यपि स्त्रियाँ मनोहर होती हैं - यह सत्य है और संपत्तियाँ रमणीय होती हैं - यह भी सत्य है; परन्तु हमारा जीवन मदमाती स्त्री के कटाक्ष के समान चंचल है - क्षणभंगुर है ! ( यह भी सत्य है ) ]
चौर नामक एक कवि था । उसके विषय में किसीने लिखा था :
रम्या विभूतयः । हि जीवितम् ॥
यस्याश्चौर श्चिकुर निकुरः ॥
[ कविता रूपी कामिनी के लिये जो केशकलाप के समान शोभावर्द्धक था ! ]
वह एक बार राजा भोज के महल में चोरी करने गया । धन खोजते खोजते उसे पूरी रात बीतने पर भी सफलता नहीं
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