________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१७
दे दिया और कहा कि मेरी ओरसे यह पत्ता महाराज मुंज के चरणों में रख दीजियेगा । यही मेरी अन्तिम इच्छा या प्रार्थना है । अब आप अपना काम कर सकते हैं अर्थात् महाराज मुज के आदेशानुसार मेरा वध कर सकते हैं ।
श्लोक पढ़कर सैनिकों को भी दया आ गई और ऐसे निर्दोष समझदार बालक का वध करना उन्हें उचित नहीं लगा । प्रमाण प्रस्तुत करने के लिए उन्होंने बालक के कपड़े उतरवा लिये और उसे पहाड़ की एक गुफा में बिठा दिया ।
सैनिकों ने राजमहल में जाकर महाराज मुज के सामने बालक भोज के कपड़े रख दिये और वह श्लोक भी बालक की इच्छा के अनुसार चरणों में रख दिया । महाराज मुंज ने ध्यानपूर्वक उस वटपत्र पर रक्तलिखित श्लोक को अनेक बार पढ़ा । फलस्वरूप वे अपने किये विश्वासघात पर पछताने लगे ! रोने लगे ! ! विलाप करने लगे ! ! !
सैनिकों ने महाराज मुरंज के हार्दिक दुःख को समझकर कहा : "राजन् ! बालक भोज अभी जीवित है । हम अभी लाकर उसे आपके सामने प्रस्तुत कर देते हैं ।"
यह सुनकर मुंज की शोकाकुलता मिट गई। कुछ घंटों के बाद प्रत्यक्ष भोजकुमार उनके सामने लाया गया । उसे हर्षपूर्वक छाती से लगाकर मुंज ने सिंहासन पर बिराजमान कर दिया और फिर प्रायश्चित स्वरूप स्वयं संन्यासी बनकर जंगल में तप करने चल दिये ।
आपको उत्सुकता होगी कि वह श्लोक आखिर क्या थाउसमें ऐसी कौन सी मार्मिक बात कही गई थी, जिससे सहसा ज का हृदय परिवर्तन हो गया । सुनिये वह श्लोक :
For Private And Personal Use Only