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ज्ञानी पुरुष ने कहा :- "वैसे तो यह महल अत्यन्त मनोरम है; फिर भी दो दोष मुझे इसमें दिखाई दे रहे हैं।"
__उत्सुकता और आश्चर्य से राजा साहब ने पूछा :"बताइये, शीघ्र बताइये ; जिससे आवश्यक सुधार करवाया जा सके।"
ज्ञानी पुरुष :- “वे दोनों दोष ऐसे हैं राजन् ? जिन्हें आपके कारीगर तो क्या स्वयं भगवान् भी मिटा नहीं सकते !"
यह सुनकर राजा साहब का गर्व गलने लगा। वे चुपचाप जिज्ञासु दृष्टि से ज्ञानी पुरुष का मुंह ताकने लगे।
अन्त में ज्ञानी पुरुष ने कहा :- राजन ! इस महल का एक दोष तो यही है कि एक दिन यह गिर जायगा - पहले खंडहर बनेगा और फिर मिट्टी में मिल जायगा। दूसरा दोष यह है कि इसका निर्माता किसी दिन मर जायगा - इस भव्य भवन को विवशतापूर्वक छोड़कर श्मशान में चला जायगा।"
__यह सुनकर राजा साहब का सारा धमंड नष्ट हो गया। अनित्यता के बोध ने उन्हें जगा दिया ।
नलिनीवलगतसलिलं तरलम् तद्वज्जीवितमतिशयचपलम् विद्धि व्याध्यभिमानग्रस्तम्
लोकं शोकहतञ्च समस्तम् [कमलिनी के पत्ते पर रही हुई जल की तरल बूंद के समान जीवन अत्यन्त चंचल है। सारा संसार व्याधि, अभिमान और शोक से ग्रस्त है - ऐसा जानो।]
एक कहावत है - __ “जर जोरू जमीन । झगड़े के घर तीन ।।"
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