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मरे | मरने से पहले पेड़ के प्रश्न का उत्तर उन्होंने इस
प्रकार दिया था :
पान बिगाड़े फल भखे उड़-उड़ बैठे डाल | तुम तो जलो, हम उड़ चलें ? जीना कितनें काल ! इससे विपरीत जो कुमित्र होते हैं, वे संकट आने पर दूर भाग जाते है । एक दृष्टांत से यह बात स्पष्ट होगी ।
दो मित्र थे - मोटेराम और पतलेराम | दोनोंने संकट आने पर एक-दूसरे की सहायता करने का दृढ़ संकल्प कर रखा था ।
एक दिन प्राकृतिक दृश्यों के सौन्दर्य का सुख लूटने के लिए वे किसी जंगल में जा पहुँचे । मोटेराम को पहाड़, झरने, पेड़, लताएँ, मोर, कोयल, तोते आदि में सुन्दरता और मधुरता के दर्शन हो रहे थे तो पतलेराम को उसी सुन्दरता में छिपी भयंकरता का भान हो रहा था । साँप, भालू, सिंह, भेड़िये, बिच्छू, कांटे, चट्टाने, गुफाएँ, घाटियाँ आदि अनिष्ट दुःखदायक प्राणियों एवं वस्तुओं का सामना भी इस जंगल में किसी भी समय करना पड़ सकता हैऐसा यह सोच रहा था ।
ठीक उसी समय सामने से दौड़कर आता हुआ एक भयंकर भालू पतलेराम को दिखाई दिया। अपनी जान बचाने के लिए पतलेराम पास ही खड़े एक पेड़ पर चढ़कर विराजमान हो गये ।
मोटेराम अपने स्थूल शरीर के कारण न तो भाग सकते थे और न पेड़ पर ही चढ़ सकते थे; किन्तु थे वे बुद्धिमान । आत्मरक्षा के लिये वे जमीन पर लेट गये । भालू निकट आया । मोटेरामने साँस रोक ली थी । भालूने शरीर को मुर्दा मान लिया और फिर कानके पास सूंघकर चुपचाप जिधर से आया था, उधर ही लौट गया ।
भालू के दूर जाने पर पतलेराम पेड़ से नीचे उतर पड़े ।
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