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किसीने ठीक ही कहा हैं : "मित्र न छोटा जानिये, तासै सुधरे काज ।।"
हमें किसी मित्र को छोटा नहीं समझना चाहिये । छोटे से छोटा मित्र भी हमारे बिगड़े काम को सुधार सकता हैबिगड़ी बात को बना सकता है- हमें प्राणसंकट से बचा सकता है, तब भला वह छोटा कैसे ?
जंगल में एक बार आग लगी । दूसरे वृक्षों के साथ आम का एक विशाल पेड़ भी जलने लगा । उस पेड़ पर जो पक्षी बैठे थे, वे उस पागके भय से भी नहीं उड़े यह देख कर पेड़ने उनसे कहा :
दव लागी निकसत धुआँ सुरण पंछीगरण ! बात । हम तो जलें जु पाँख बिन तुम क्यू ना रवि लात ?
पक्षी पेड़ से प्रेम करते थे। वे अपने मित्रको संकट में छोड़कर जाना उचित नहीं समझते थे। स्वयं जलते हुए भी अपने आश्रित पक्षियों के प्रति सहानुभूति प्रकट करने वाले उस महात्मा आम्रवृक्ष के सामने पक्षियों का मस्तक यदि श्रद्धा से झुक गया तो यह कोई आश्चर्यजनक बात नहीं थी। उनके हृदय में आम्रवृक्षने और भी ऊँचा स्थान बना लिया था - यह कह कर कि हम तो पंख न होने के कारण मज़बूरी में जल रहे हैं, परन्तु तुम उड़ सकते हो, फिर क्यों उड़ कर दूर नहीं जा रहे हो ?
पक्षी सोच रहे थे कि सूखके साथी तो प्रायः सभी होते हैं ; परन्तु दुःख में भी जो साथ निभाते हैं, उन्हीं की मित्रता सच्ची होती है :
रहिमन विपदा हू भली जो थोरे दिन होय । हित अनहित या जगत में जानि परत सब कोय । मित्र और शत्रु की पहिचान संकट में ही होती है । आखिर पेड़ के साथ पक्षी भी आगकी लपटों में जल
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