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१३ मगर यह बात किसको याद
रहती है जवानी में? महाराज सिंहरथ वनक्रीडार्थ जा रहे थे। मार्ग में उन्हें पत्र - पुष्प - फल से समृद्ध आम का एक पेड़ दिखाई दिया। वे घोड़े पर सवार थे। घोड़ा जब उस पेड़ के नीचे से गुजर रहा था, तभी उन्होंने हाथ उठाकर उस पेड़ से एक मंजरी तोड़ ली और आगे बढ़ गये। उनके पीछे अंगरक्षकों का एक दल आ रहा था। महाराज का अनुसरण करते हुए प्रत्येक अंगरक्षक ने एक - एक मंजरी तोड़ ली। अंगरक्षकों के पीछे सेना की एक टुकड़ी आ रही थी। प्रत्येक सैनिकने उस पेड़ से एक - एक फल और दो-तीन पत्ते तोड़ लिये। देखते ही देखते पूरा पेड़ एक ढूंठ में परिवत्तित हो गया। जब महाराज ने लौटते समय उस शोभाहीन ठूठ को देखा तो सौन्दर्य को अनित्यता का उन्हें बोध हो गया। वे सोचने लगे :सवें क्षयान्ता निचयाः
पतनान्ता: समुच्छ्याः । संयोगा: विप्रयोगान्ताः
मरणान्तं हि जीवितम् ॥ [सभी संग्रहों का अन्त में क्षय होता है। सभी उन्नतियों का पतन होता है। सभी संयोगों का एक दिन वियोग होता है और जीवन का अन्त मृत्यु से होता है ।]
एक उर्दू का शायर लिखता है :'आगाह अपनी मौत से, कोई बशर नहीं।
सामान सौ बरस का है, पलकी खबर नहीं ।। यही बात संस्कृत के एक कविने लिखी है :भविष्यवाणी
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