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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १२ www.kobatirth.org जरा जाव न पीलेइ जाविदिया न हायन्ति वाही जाव न वड्ढइ | ताव धम्मं समायरे ॥ [ जब तक बुढापा पीडित नहीं करता, जब तक रोग बढ़ नहीं जाता, और जब तक इन्द्रियाँ क्षीण नहीं हो जातीं, तब तक धर्म का आचरण कर लेना चाहिये । ] इसीसे मिलती-जुलती बात एक श्लोक में है :यावत्स्वस्थमिदं शरीरमरुजम् यावज्जरा दूरतो यावच्चेन्द्रियशक्तिरप्रतिहता आत्मश्रेयसि तावदेव विदुषा Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यावत्क्षयो नायुषः । कार्यः प्रयत्नो महान् सन्दीप्ते भवने तु कूपखननम् प्रत्युद्यमः कीदृश: ? [ जब तक यह शरीर स्वस्थ है - नीरोग है, जब तक बुढापा दूर है, जब तक इन्द्रियों में शक्ति कायम है और जब तक आयु क्षीण नहीं हुई है, तभी तक विद्वान् व्यक्ति को आत्मकल्याण के लिए प्रयास कर लेना चाहिये; अन्यथा घर में आग लग जानेपर कूप खोदने का प्रयत्न कैसा ? ] एक उर्दू शायर ने यौवन की नश्वरता के विषय में कहा था : जवानी ख्वाब की - सी बात है दुनिया ए फानी में । For Private And Personal Use Only -
SR No.008725
Book TitleMitti Me Savva bhue su
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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