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जा रही थी-एक सड़क पर कोई कार । उसमें लाखों रुपयों की लागत से बने अलंकार धारण किये हुए एक सेठजी बैठे थे।एक छोटा-सा बालक उस कार से कुचल गया। तत्काल सेठजी के मुह से फल झरे : "ये लोग जब अपने बच्चों को सँभाल नहीं सकते तो पैदा क्यों करते हैं ? इन पर तो केस चलाया जाना चाहिये ! ढोर कहीं के ? पता नहीं कैसे-कैसे नमूने भरे पड़े हैं इस दुनिया में !”
कार आगे बढ़ गई-सई से । बच्चा बेहोश और घायल अवस्था में दुर्घटना स्थल पर ही पड़ा रहा।
__ थोड़ी ही देर बाद उधर से गुजरने वाले किसी भिखारी की नजर उस बालक पर पड़ी। वह दौड़कर उसके निकट पहुँचा। उसने पानी से मुह पर कुछ छींटे लगाये। फिर अपनी फटी चादर के छोर से हवा करने लगा। जब बालक होश में आया, तब उसके माँ-बाप का नाम उसीसे पूछकर उनके पास बालक को पहुँचा दिया। किसी फारसी कवि ने ठीक ही कहा है :
तने आदमी शरीफस्त बजाने आदमीयत ।
न हमी लिबाप्त जेबास्त निशाने आदमीयत ॥ [शरीर मानवता से ही पवित्र होता है। आकर्षक पोशाक मानवता का लक्षण नहीं है] ___ यदि नेत्र, कान, मुख, नाक और हाथ-पाँव के आधार पर ही कोई मनुष्य होने का दावा करे तो दीवार के चित्र और मनुष्य में कोई अन्तर नहीं रहेगा।
घरमें रहने वाले मनुष्य को गृहस्थ नहीं कहते, दाता को कहते है; अन्यथा पक्षी भी अपने घर (घोंसले) में रहता है, सो उसे भी गृहस्थ कहा जायगा।
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