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२३३ महिलाने पैकेट खोलकर देखा तो मालूम हुआ कि इसमें दस स्वर्णमुद्राएँ हैं। मन-ही-मन उसने कदि की उदारता को प्रणाम किया। उसके पति का स्वास्थ्य सी सुधर गया और उन मुद्राओं की सहायता से दे कमाई करने लगे।
एक भिखारी किसी भवन के द्वार पर खड़ा था। वह खाने के लिए रोटी या कूल पैसे माँग रहा था। भवन का मालिक पहले तो चुप रहा, यह सोचकर कि कुछ नहीं बोलेंगे तो भिखारी चला जायगा, परन्तु वह खड़ा ही रहा और पुकारता रहा।
अन्त में मालिक ने चिल्लाकर कहा : "चल हट ! आगे बढ़। यहाँ अभी कोई आदमी (नौकर) नहीं है।'
भिखारी ने कहा : "तो थोड़ी देर के लिए आप ही आदमी बन जाइये न?"
जो देता है, वही ग्रादमी है। दान करके आप आदमी (सच्चे इन्सान) बन जाइए-ऐसा उस भिखारी की बातका आशय था।
किसी गाँव मैं एक बार कोई कमिश्नर साहब पहँचे। वहाँ के पटेल ने उनका खूब स्वागत-सत्कार किया। फिर बिदाई के समय कहा : “साहब ! अब तक हमारे इस गाँव में कलेक्टर, डाक्टर, मास्टर, मिनिस्टर, मिस्टर, सिस्टर आदि 'टर' तो अनेक बार आते रहे हैं; किन्तु नर (मनुष्य, कमिश्नर शब्द का उत्तरार्ध) तो आप यहाँ पहली ही बार आये हैं।"
'नर' का अर्थ है-मनुष्य, जिसकी परिभाषा इन शब्दों में भी की गई है : __ मनुष्य हैं वही कि जो मनुष्य के लिए मरे ॥
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