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आदमी अब जानवर की सरल परिभाषा बना भस्म करने विश्व को वह आज दुर्वासा बना । क्या जरूरत राक्षसों की चूसने इन्सान को
आदमी ही आदमी के खून का प्यासा बना ।। जिस प्रकार गाय-गाय की एक जाति है और हाथीहाथी की एक जाति, उसी प्रकार मनुष्यमात्र की भी एक ही जाति है; परन्तु आदमीने जातिभेद की कल्पना करके विशाल मानवसमाज के टुकड़े-टुकड़े कर दिये :
भेदः कृतो मनुष्येण, 'न धात्रा समशिना ।
शीलं चिह्न सुजातस्य, न जाति न च जीविका ॥ [जातिभेद विघाताने नहीं बनाया, क्योंकि वह समदर्शी हैं । यह भेद मनुष्य ने ही बनाया है। अच्छे मनुष्य का लक्षण शील है (सदाचार है), न जाति है और न जीविका]
सदाचार परोपकार के लिए प्रेरित करता है
इंग्लैंड के कवि गोल्डस्मिथ केवल कविता ही नहीं, इलाज भी करते थे। एक दिन कोई महिला अपने बीमार पतिदेव का इलाज कराने के लिए उन्हें अपने घर बुला ले गई।
कवि चले गये । घर जाकद उन्होंने पति की हालत देखी तो पता चला कि गरीबी के कारण उत्पन्न मानसिक चिन्ता ही उसकी बीमारी का मूल कारण है।
कविने कहा : "मैं घर जाकर एक दवा भेज दूंगा। उससे इनका स्वास्थ्य सुधर जायगा।"
घर लोटकर कविने एक छोटा-सा पैकेट भेजा। उस पर लिखा था-"जब-जब जरूरत हो, इस पैकेट में रखी दवा का उपयोग करें।"
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