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२३० जिस हाथ से चाबी घुमाई जाती है, वह भी मनुष्यका ही है । सोना, चाँदी और हीरे का मूल्यांकन भी मनुष्य ही करता है और ये सब भी मनुष्य के शरीरकी शोभा बढ़ाने के लिए ही विविध अलंकारों के रूप में परिवत्तित होते रहते हैं; इसलिए मनुष्य ही सबसे श्रेष्ठ है !"
एक आदमी ने अपने बेटे को कागज पर बना हआ एक ऐसा चित्र दिखाया, जिसमें सारे संसार के देश, बड़े - बड़े नगर, समुद्र आदि मौजूद थे। फिर उसी कागजको उलटकर उस पर बना हुआ एक मनुष्य का चित्र दिखाया । फिर कागज के दस टुकड़े करके बालक से कहा कि इन्हें यथास्थल जमा कर संसारका चित्र फिरसे तैयार करके दिखाओ ।
बालक ने बहुत कोशिश की, परन्तु उन टुकड़ों से संसार की प्राकृति स्पष्ट नहीं हो सकी । आखिर पिताने कहा : "तुम उल्टे टुकड़े जमा कर मनुष्य की आकृति तैयार करो और फिर फटे स्थानों पर कागज़ की चिन्द्रियाँ गोंद से चिपका दो। उसके बाद पूरे कागज को उलट दो तो संसार अपने आप बन जायगा ।
उसने वैसा ही किया। मनुष्य को जोड़ते ही सारा संसार जुड़ गया । वास्तव में सारा संसार मनुष्य के पीछे ही तो है ! संसार को स्वादिष्ट बनाने वाला यदि कोई नमक है तो उसका नाम मनुष्य ही है। उसी से संसारकी शोभा है ।
वह मनुष्य ही है, जिसने बड़े-बड़े जंगलों को खेतों में, बगीचों में और वस्ती में बदल दिया। बड़े - बड़े भवन बनाये। बड़े - बड़े वैज्ञानिक आविष्कार किये । चन्द्रतल पर जाकर वहाँ की मिट्टी खोद लाया । क्या नहीं किया उसने ?
परन्तु स्वार्थवश उसने संहारक अश्त्र-शस्त्रोंका निर्माण
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