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के लिए अनेक मित्रों को निमन्त्रित किया । मित्र निमन्त्रण पाकर घर आ भी गये और उस आदमी ने एक-एक वस्तु उठाकर उसका परिचय देना प्रारम्भ ही किया था कि अकस्मात् बल्ब फ्यूज हो गया । अब अन्धकार में यदि वह केवल शब्दों का प्रयोग करता रहे तो क्या उन मित्रों को पूरा सन्तोष होगा ? बिल्कुल नहीं । यही बात हमारे धार्मिक प्रवचनों में होती है | श्रावक-श्राविकाओं की भावना का बल्व फ्यूज हो गया है, इसीलिए हमारे कोई शब्दों से किसी को सन्तोष नहीं होता । हाँ, जिनकी भावना का बल्ब जल रहा है, उन्हें आज भी सन्तोष होता है - हो रहा है ।
लालटेन की हंडी पर काजल जमा हो तो लौका प्रकाश बाहर नहीं आ पाता; उसी प्रकार यदि भावना अशुद्ध हो - उस विषयकषाय की कालिमा लगी हो तो आत्मा का प्रकाश प्रकट नहीं हो पाता । ज़रूरत है- उस कालिमा को मिटाने की ।
प्रवचन सायरन के समान भावना को जगाने के लिए है । साधु ओपरेटर है । मेरी तरह प्रतिदिन वह पौने नौ बजे से दस बजे तक सायरन बजाता है; किन्तु होते हैं कुछ लोग, जो सायरन की आवाज़ सुनकर भी सोते ही रहते हैं ।
विद्यार्थी को देख कर आपको विद्यालय की याद आ जाती है, पुलिस को देख कर जेल की और डॉक्टर को देखकर अस्पताल की । उसी प्रकार साधुको देखकर आपको किसकी याद आनी चाहिये ? सिद्धशिला की या मोक्षकी; क्योंकि मोक्ष की साधना में उसने अपना जीवन समर्पित कर दिया है । कहा है :
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