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मेरा शरीर भी मेरे कुटुम्बियों द्वारा गाड़ दिया जायगा। उसे अपनी मौत स्पष्ट दिखाई देने लगी। वह अपने पापों का स्मरण करके पछताने लगा। उसका हृदय परिवर्तित हो गया उसने संन्यासी से कहा कि मेरा उद्धार कैसे होगा? कृपया कोई उपाय सुझाइये।
संन्यासीने उससे कहा कि अपने पास जितना भी धन इस समय मौजूद है, वह सब जिसका है, उसे लौटा दो; और यदि मालिक का पता न लगे तो गरीबों में बाँट दो। फिर ईमानदारी से मेहनत करके अपना और अपने परिवार का पालन करो। उद्धार का यही मार्ग है।
___ डाकूने वैसा ही किया और वह एक सज्जन बन गया। डाकू रत्नाकर को भी "वाल्मीकि ऋषि" बनाने वाला एक संन्यासी ही था। उससे जब जब कहा गया कि तुम जो धन लूटते हो, उसका उपयोग तो सारे कुटुम्बी करते हैं; परन्तु लटसे जिस पाप का उपार्जन करते हो, उसका फल तुम अकेले भोगोगे। कुटुम्बियों से पूछने पर पता चला कि सचमुच पापों का फल भोगने के लिए कोई तैयार नहीं है इससे उसकी आँखें खुल गईं और उसी दिन वह डाकू से संन्यासी बन गया । डाकू अंगुलिमाल, जो प्रतिदिन पथिकों की उँगलियाँ काटकर उनकी माला बनाकर अपने गले में धारण करता था, महात्मा बुद्ध के उपदेश से प्रभावित होकर एक बौद्ध भिक्ष बन गया था !
उपदेश का प्रभाव जीवित व्यक्तियों पर पड़ता है, मुर्दो पर नहीं। एक साधु के प्रवचन में आसोजी नामक श्रावक ऊंघ रहा था। बीच में ही प्रवचन रोक कर साधुने पूछा :"आसोजी! क्या सो रहे हो?"
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