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दिखाई देते हैं; फिर भी विरक्ति का लेशमात्र भी हृदय को छू
नहीं पाता ।
पौधे पर एक कली निकलती है, विकसित होकर सुन्दर फूल बनती है और मुरझाकर जमीनपर गिर पड़ती है । सूर्य प्रातःकाल होते ही उगता है, सारे आकाश में घूमता है और शामको अस्त हो जाता है । किसी घरमें एक गर्भस्थ शिशु जन्म लेता है - क्रमशः बालक, किशोर और युवक बनता है और फिर वृद्ध होकर मर जाता है । क्या ये सारे दृश्य जगत् की नश्वरता - क्षणिकता - अनित्यता पर प्रकाश नहीं डालते ?
एक डाकू था । अपने चार-पाँच साथियों को लेकर वह ster डालने गया । लौटते समय रास्ते में साथियों की हत्या कर दी, जिससे धन का बँटवारा न करना पड़े। फिर सारा धन जमीन खोदकर गाड़ने के लिए श्मशान में गया । वहाँ किसी पेड़ की छाया में चट्टान पर एक संन्यासी बैठा था । डाकू ने पूछा :- "आप यहाँ क्यों बैठे हैं ?"
संन्यासी :- "मुझे एक व्यक्तिकी तलाश है ।" डाकू :- "तो उसे खोजने के लिए बाजार में जाइये - बस्ती में जाइये | यहाँ वह कैसे मिल सकेगा आपको ?"
संन्यासी :- "मिलेगा - अवश्य मिलेगा; क्योंकि यहाँ एक न एक दिन उसे आना ही पड़ेगा । लोग उसे बाँधकर लायँगे ! "
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डाकू पर इस उत्तर का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा वह विचारमग्न हो गया । सोचने लगा कि जिस प्रकार मैंने अपने साथियों की हत्या की है, उसी प्रकार एक दिन कोई मेरी भी हत्या कर देगा | जैसे मैं धन गाड़ने आया हूं, वैसे ही एक दिन
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