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कलुषित नहीं कर सकती।
ऐसे विवेकियों का जीवन सफल होता है; इसलिए मौत उन्हें खिन्न नहीं कर सकती :न सन्तसन्ति मरणन्ते सीलवन्तो बहुस्सुया ॥
-उत्तराध्ययन ५/२९ [सुशील बहुश्रुत व्यक्ति मृत्यु से भयभीत नहीं होते ] महात्मा कबीर भी कहते थे :जा मरने से जग डरे
मो मन में आनन्द । कब मरिहीं कब पाइहौं
पूरन परमानन्द ॥ मृत्यु सबसे बड़ा सत्य है । मृत्यु से पूर्व द्रोणाचार्य ने कहा था कि मेरा दाहसंस्कार ऐसे स्थान पर करना, जहाँ पहले किसी का न हुआ हो। उनकी इच्छाके अनुसार ऐसा स्थान ढूँढने का भरपूर प्रयास किया गया; परन्तु नहीं मिल सका। द्रोणाचार्य का उद्देश्य इससे पूरा हो गया। वे सबको यह समझाना चाहते थे कि मृत्यु सर्वत्र होती रहती है - सबकी होती है - मेरी भी हुई है ; इसलिए मृत्यु पर शोक मत करना । शोक से कोई मृतक जीवित नहीं होता। मृत्यु एक स्वाभाविक प्रक्रिया है । हम जहाँ भी अवस्थित हैं, वह किसी की मृत्युभूमि रह चुकी है। हम सब कब्ज पर बैठकर जोवन की चर्चा करते हैं।
एक रोगी, एक बूढ़ा और एक मुर्दा देखकर बुद्ध संसार से विरक्त हो गये थे; परन्तु ये सब हमे बार - बार
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