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अनित्यता की ओर आकर्षित करते हुए कहा था :कुसग्गे जह ओस बिन्दुए
थोवं चिट्टइ लम्बमाणए। एवं मणआण जीवियं
समयं गोयम! मा पमायए ।। परिजूरइ ते सरीरयं
केसा पंडुरया हवन्ति ते। से सोयबले य हायई समय गोयम! मा पमायए।।
- उत्तराध्ययनसूत्र [कुश (तिनके ) के अग्रभाग पर लटकने वाली ओस की बूंद जिस प्रकार वहाँ थोड़ी देर के ही लिए टिकती है, उसी प्रकार हे गौतम! मनुष्यों का जीवन भी (न टिकने वाला) होता है; इसलिए तू क्षणभर भी प्रमाद मत कर। तेरा शरीर शिथिल हो रहा है (उस पर जगह - जगह झुर्रियाँ पड़ गई हैं) तेरे केश सफेद हो गये हैं और तेरे श्रोत्रबल (कानों में सुनने की शक्ति) की भी हानि हो चुकी है; इसलिए हे गौतम! तू क्षण - भर भी प्रमाद मत कर। ____ कामसुख क्षणिक होता है और मोक्षसुख स्थायी । अधिकांश संसारी जीवों का जीवन कामसुख पाने में ही समाप्त हो जाता है। विवेकियों पर उसका प्रभाव नहीं पड़ता। कहा है :“विवेकधाराशतधौतमन्तः
सतां न कामः कलुषीकरोति ॥" [संकड़ों विवेक की धाराओं से जिनका अन्तःकरण धुलकर निर्मल हो जाता है, उन सज्जनों के अन्तःकरण को कामना
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