________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१६७ घटना से मन-ही-मन उसे इतनी ग्लानि हुई उसने आत्महत्या कर ली।"
अंग्रेज यह कहते हुए चले गये कि ऐसी औरत तो हमारे यूरोप में एक भी नहीं मिलेगी।
एक वैदिक रूपक है :
विश्वकर्मा ने पहले सृष्टि बनाई। फिर उपभोक्ता के रूप में जब वह मनुष्य का निर्माण करने लगा, तब सत्यने कहा : यह स्वार्थवश झूठ बोलेगा, अन्याय करेगा।" शान्ति बोली : "जहाँ सत्य और न्याय नहीं रहते, वहाँ मैं कैसे रह सकती हूँ ?' किन्तु उसी समय प्रेमसे मनुष्य की ओर संकेत करते हुए दया बोली : "आप चिन्ता न करें । मैं मनुष्य के हृदय में रहँगी और उसे सदा सन्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती रहूँगी !” |
तब से दया बराबर अपनी डयूटी बजा रही है। वह विदेशी विद्वानों से भी ऐसे उद्गार प्रकट कराती है :
___ मैं किसी बगुले को तीरका निशाना बनाने के बजाय उसे उड़ते देखना चाहता हूँ। किसी बुलबुलको खा जाने की अपेक्षा उसके गीत सुनना पसन्द करता हूँ।" - रस्किन
"भारी तलवार कोमल रेशम को नहीं काट सकती । दया और मधुर वाणी से हाथी को चाहे जहाँ ले जाओ ।
- शेख सादी
"दयालु हृदय खुशी का वह फव्वारा है, जो अपने पासकी हर चीज़ को मुस्कानों से भर कर ताजा बना देता है । -इविन
For Private And Personal Use Only