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प्रतिनिधि ने सभा में उनके भाषण के बाद खड़े होकर उस घटना के सन्दर्भ में राष्ट्रपतिजी की दयालुता की प्रशंसा की। उसके बाद राष्ट्रपति ने तत्काल खड़े होकर कहा : "मैं ने सूअर पर कोई उपकार नहीं किया है। उसे कीचड़ में तड़पते देख कर मेरे हृदय में जो तड़पन (अनुकम्पा) हुई थी, उसी को मिटाने के लिए मैं ने उसे बाहर निकाला था। इस में प्रशंसा जैसी कोई बात ही नहीं है !"
झठा आरोप लगाकर सुदर्शन सेठ का चरित्रहनन किया गया; किन्तु रानी को बचाने के लिए दया वश वे मौन रहे और कर्मफल मान कर आने वाले परीषह को शान्ति से सहते रहे ।
जैन धर्मकी अहिंसाका अर्थ कायरता नहीं है, जैसा कि आलोचक प्रायः कहा करते हैं। उन्हें इतिहास में देखना चाहिये कि जैनधर्माविलम्बियोंने कैसे-कैसे युद्ध न्यायरक्षा के लिए किये थे ।
वस्तुपाल तेजपाल दो भाई थे। दोनों राणा वीरधवल के मन्त्री थे । वीर धवल गुजरात में मण्डली नामक महानगरी के नरेश थे।
वस्तुपाल और तेजपाल दोनों जैन धर्म के अनुयायी थे। वे केवल मन्त्री ही नहीं थे, वीर भी थे-कुशल योद्धा भी थे। राज्य की रक्षा के लिए उन्हों ने ६७ बार जीवन में वीरतापूर्वक युद्ध किया था और एक भी युद्ध में पराजित नहीं हुए थे । सदा सर्वत्र विजय प्राप्त करके अपने राणा की रक्षा की - अपने राज्य का गौरव बढाया और स्थायी प्रतिष्ठा स्वयं भी प्राप्त की थी।
वस्तु
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