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बीबी ने पूछा : "मियाँजी ! आप को तो जंगल जाकर लौटने में प्रतिदिन लगभग एक घंटा लगता है। आज इतनी जल्दी कैसे लौट आये ? घंटे भरका कार्य दस मिनिट में कैसे निपटाया ?"
बड़े मुल्ला : "वहाँ सौ-दो सौ साँप मेरी ओर भागते हुए चले आ रहे थे, इसलिए मैंने वहाँ ठहरना उचित नहीं समझा।"
बीबी : 'क्या सौ - दो सौ साँप देख लिये आपने ?"
मियाँ : "नहीं, दूरसे एक नज़र डाल दी थी । बीसतीस थे !"
बीबी : “क्या सचमुच बीस-तीस साँप थे ?"
मियाँ : "बीस-तीस नहीं, तो दो-चार अवश्य रहे होगें।'
बीबी : “दो-चार ? क्या आपने साँप बराबर गिने थे ?"
मियाँ : “गिने तो नहीं थे; फिर भी मेरा खयाल है कि एक साँप तो जरूर होगा; अन्यथा मुझे डर क्यों लगता?"
बीबी : "कल्पना से; क्योंकि कल्पना करने से भी उतना ही डर लगता है, जितना प्रत्यक्ष देखने से ।"
कल्पित भय से बड़े मुल्ला को ऐसी चिन्ता हुई कि उन्होंने अपना लोटा ही जंगल में फेंक दिया !
द्वितीय विश्वयुद्ध में प्रतिदिन अपने को अट्ठारह घंटों तक अत्यन्त व्यस्त रखने वाले मिस्टर चचिल से किसी ने पूछा : “क्या आपको कभी कोई चिन्ता नहीं होती ?"
चचिल ने उत्तर दिया : "मेरे पास भला इतना समय कहाँ है कि मैं चिन्ता करूं ?"
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