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मेरे साथ इतनी बड़ी मज़ाक क्यों की ? सन्त होकर आप झूठ क्यों बोले ?"
एकनाथ : "मैं तुम्हारे प्रश्न का उत्तर देना चाहता था। इसलिए मैंने ऐसी भविष्यवाणी की थी। जैसे सप्ताह-भर तक तुमने मृत्यु को याद रख कर निष्पाप जीवन बीताया, वैसे ही हम जीवन-भर मृत्यु को याद रख कर निष्पाप जीवन बिताते हैं। निष्पाप जीवन ही प्रसन्नता का रहस्य है । अभी मृत्युशय्या पर भी तुम्हारा चेहरा शान्त था, प्रसन्न था-यह तुमने स्वयं अनुभव किया है। यही तम्हारे प्रश्न का प्रत्यक्ष उत्तर था, जो मैंने दिया है। रही बात शारीरिक शिथिलता एवं निर्बलता की, सो इसका कारण निराशा है-भय है । मृत्यु का स्मरण अवश्य रखना चाहिये, जिससे जीवन सद्व्यवहारमय हो; परन्तु मृत्यु से डरना नहीं चाहिये । मौत की चिन्ता नहीं करनी चाहिये । जब मैंने कहा कि तम वर्षों जीने वाले हो तो तुम्हारे भीतर जो मरने की चिन्ता थी, निराशा थी, वह एकदम समाप्त हो गई और उसका फल यह हआ कि तम्हारे शरीर में खोई शक्ति पुनः लौट पायी, सो अब यह बात अच्छी तरह तुम्हें समझ में आ गई होगी कि निष्पाप और निश्चिन्त जीवन ही प्रसन्नता का रहस्य है। इस विधि से कोई भी व्यक्ति प्रसन्न रह सकता है-अपने अस्तित्व को सार्थक कर सकता है।" ___ इस प्रकार प्रवचन देकर सन्त एकनाथ अपने आश्रम को लौट गये।
एक ज्योतिषी भविष्यकथन का व्यवसाय करता था । मन्त्री ने राजासे कहा कि उसे दरबार में बुलाकर उसके भविष्य-कथन की जाँच करनी चाहिये कि उसमें कितना सत्य है ।
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