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मृत्युकी भविष्यवाणी कर दी तब उसमें शंका की भी कोई गुंजाइश नहीं रही ।
भक्त को जो कुछ करना था, इन्हीं सात दिनों में निपटाना था । उसे अपने पिछले जीवन की घटनाएँ भी याद आने लगीं । जिन-जिन की उसने चोरी की थी, उन-उनकी वस्तुएँ वह लौटा आया । जिन-जिनका अपमान किया था, गालियाँ देकर जिन्हें दुखी बनाया था, मारपीट करके जिनको अपने स्वार्थ के लिए परेशान किया था, उन सबसे दौड़-दौड़ कर क्षमा माँग ली | जिन से रिश्वत ली थी, उन्हें व्याजसहित लौटा दी । सब तरह से आत्मा को हल्का कर लिया । नया पाप करने की तो फुरसत ही नहीं थी ।
एकनाथ : " नहीं जीवित रहने वाले हो
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सातवें दिन शान्ति से मृत्यु की प्रतीक्षा में वह शय्या पर पड़ा था । शरीर बहुत कमजोर हो गया था, परन्तु मनमें शान्ति थी । उसी दिन सन्त एकनाथ उससे मिलने उसके घर गये । कमजोरी के कारण वह उनको प्रणाम करने के लिए उठ भी न सका । लेटे-लेटे ही हाथ जोड़ कर निवेदन किया : "गुरुदेव ! आपकी भविष्यवाणी सच निकली । आज मैं मरनेवाला हूँ । अब अन्तिम समय आ चुका है । देखिये, यह शरीर कितना शिक्षित हो गया है !
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भाई ! तुम अभी कई वर्षों तक मृत्यु श्राज नहीं श्रायेगी ।"
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यह सुनते ही चौंकता हुआ भक्त उठकर खड़ा हो गया और उनके चरणों में सिर झुकाकर प्रणाम किया उसने । फिर बोला : “गुरुदेव ! जब मैं वर्षों जीने वाला हूँ, तब आपने पहले एक सप्ताह में मृत्यु हो जायगी-ऐसी भविष्यवाणी क्यों की ?
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