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१७८ [माता न मुझसे सन्तुष्ट है और न उस (पत्नी) से । वह (पत्नी) भी न मातासे सन्तुष्ट है, न मुझसे । मैं भी न मातासे सन्तुष्ट हूँ और न उस (पत्नी) से । हे राजन् ! आप ही कहिये, इसमें दोष किसका है ?]
राजा भोज : “निर्धनताका ही इसमें दोष है; और किसीका नहीं !"
ऐसा कहकर खजाने से उसे दस हजार स्वर्णमुद्राएँ दिलवा दीं। उनकी निर्धनता मिट गई और पूरा परिवार सुख-चैन से रहने लगा।
जर्मनीकी पराजयके बाद वहाँ अधिकांश लोग बीमार रहने लगे । कारण की छानबीन की गई तो पता चला कि वे इस बात की चिन्ता करते थे कि आज तो रोटी मिल गई है, पर कल मिलेगी या नहीं !
वहाँ के शासकोंने सबको अगले दिन की रोटी एक दिन पहले ही बाँटनी शुरू कर दी। परिणाम यह हुआ कि धीरेधीरे सब स्वस्थ हो गये ।।
सन्त, महात्मा, ककीर आदि बिल्कुल निश्चित रहते हैं; इसलिए स्वस्थ भी रहते हैं ।
सन्त एकनाथ को प्रसन्नचित्त देखकर किसी भक्तने उनसे पूछा कि आपकी प्रसन्नता का रहस्य क्या है ?
सन्तने कहा : “इसका उत्तर तो मैं फिर कभी दे दूंगा, परन्तु आज एक ज़रूरी सूचना तुम्हें करना चाहता हूँ कि आजसे ठीक सातवें दिन तुम्हारी मृत्यु हो जायगी !"
मृत्यु का तो नाम ही दुःखद होता है । जब सन्त ने
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