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उसने बालक को समझा दिया और अपनी दवा भी दे दी । बालक जाकर खजाने से सिक्के ले आया । असली डाक्टर की दवा भी ली जाती रही । माँ-बेटे दोनों जल्दी स्वस्थ हो गये ।
राजा भोज एक बार प्रजा का सुख - दुःख जानने के लिए वेश बदल कर धारानगरी में घूम रहे थे ।
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एक ब्राह्मण के घर के पाससे गुजर रहे थे कि सहसा उन्हें रोने पीटने की आवाज़ उसमें से सुनाई दी । वे आपस में एक- दूसरे को दोषी और अपराधी बता - बता कर पीट रहे थे। दो आवाजें औरतों की थी और एक पुरुष की । औरतें सास- बहू थीं और आदमी वह ब्राह्मण था, जो इस घर का मालिक था ।
राजा भोजने मकान का नम्बर नोट कर लिया और दूसरे दिन प्रातःकाल अपना आदमी भेजकर उस ब्राह्मण को राजसभा में बुलाया ।
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ब्राह्मण चला आया । राजाने पूछा : “ कल रात को आपके घरमें मारपीट हो रही थी - शोरगुल मच रहा था । आप जैसे समझदार विद्वान् ब्राह्मण के घर में ऐसी अशान्ति क्यों ?"
ब्राह्मण ने उत्तर दिया : महाराज ! अम्बा तुष्यति न मया
नस्नुषया सापि नाम्बया न मया ।
अहमपि न तया न तया
वद राजन् ! कस्य दोषोऽयम् ?
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